आजकल “स्ट्रीट टू सुप्रीम कोर्ट” और सड़क से संसद तक एक विषय की चर्चा है, वक्फ.. वक्फ..और वक्फ | इस चर्चा में मीडिया की भी एक महत्वपूर्ण भूमिका रही है | क्योंकि हम लोकतांत्रिक व्यवस्था में है इस लिए हर स्तर पर उसकी व्यापक चर्चा हो यह आवश्यक भी है | तटस्थ चर्चा समाज में सहमति बनाने का माध्यम बनती है, लेकिन उस चर्चा में कुछ बेहूदे स्वाद जोड़ने की कोशिश हो तो फिर समाज में सहमति नहीं बनती कड़वाहट फैल जाती है | जब जब कोई विषय मुसलमानों से जुड़ा होता है तब तब कुछ बुद्धिजीवी और कुछ राजनीतिज्ञ उस विषय को हिंदू – मुस्लिम का मोड देने की कोशिश करते है | उस कोशिश में फायदा किसका होता है वह शोध का विषय है | क्योंकि ऐसा खेल खेलने वाली ज्यादातर राजनैतिक पार्टियां राजनैतिक क्षेत्र में दुर्बल हो रही है, और बुद्धिजीवी ? मीडिया में तो उनकी उपस्थिति दिख जाती है पर समाज में उनकी विश्वसनीयता का ग्राफ कितना रह जाता है यह भी शोध का विषय ही है | वैसे तो बहुत से ऐसे विषय स्वतंत्रता से पहले और स्वतंत्रता से अबतक है जिसको हिंदू मुस्लिम नजरियां दिया गया है, यहाँ सभी विषयों की बात संभव नहीं पर कुछ विषयों पर दृष्टि डाल सकते है | जैसे के राम मंदिर का विवाद .. ! कितना लम्बा चला ? इतिहास साक्षी है कि लगभग पचासों वर्ष पहले बाबर के आदेश पर राम मंदिर को तोड़ा गया और वहां मंदिर के मलबे का उपयोग कर मस्जिद बना दी गई | वर्ष 1527 में मंदिर तोड़ा और 1528 से लेकर स्वतंत्रता प्राप्ति तक 76 छोटे मोटे युद्ध हुए , और आज भव्य राममंदिर अस्तित्व में है | भारतके मुसलमानों ने अपने धार्मिक व्यवहार के लिए कोई मस्जिद बनाई हो और उसके विरुद्ध हिंदू समाज आक्रमक हुआ हो तो मामला हिंदू मुस्लिम होगा यह मान सकते है | पर यह तो बाबर के आदेश पर मीर बाकी ने मंदिर तोड़ा और हिंदू समाज की आस्था के प्रतीक के लिए पूरे हिंदू समाज ने संघर्ष किया उसमें हिंदू मुस्लिम दृष्टिकोण क्यों ढूंढना ? बाबर, हुमायूं , अकबर से लेकर औरंगजेब समेत अंतिम मुगल बादशाहों के साथ भारत के मुसलमानों का क्या संबंध ? वैसा ही मथुरा के लिए, वैसा ही वाराणसी के लिए और वैसा ही हजारों मंदिर जो मुस्लिम आक्रांताओं ने तोड़े है, यह सभी मामले आक्रमणखोरो और भारतीयों के बीच के है पर रंग चढ़ा हिंदू मुस्लिम का !हज सब्सिडी बंध हुई तब व्यापक आरोप प्रत्यारोप नहीं हुए क्योंकि हज स्वयं के पैसों से ही करनी चाहिए ऐसा इस्लाम का प्रावधान है | फिर भी बंध जबान में बाते हुई , सीधा हिंदू मुस्लिम कोण बनाने की नहीं हुईं, लेकिन जब बात तीन तलाक को खत्म करने की आई तब फिर से प्रश्न खड़े किए गए | इसमें सीधा हिंदू मुस्लिम विषय नहीं बन सकता था पर मुस्लिमों की धार्मिक सामाजिक व्यवस्था में हस्तक्षेप की बात खड़ी की गई | यह पूरा प्रश्न तो सीधा मुस्लिम समाज से जुड़ा था | अगर तीन तलाक देने वाले पुरुष मुस्लिम थे तो उस प्रथा से पीड़ित महिलाएं भी मुस्लिम ही तो थी | किसी मुस्लिम पुरुष ने अपना आधिपत्य जमाने के लिए अपनी बीवी को तीन तलाक दिए होंगे तो बहुत से घर ऐसे होंगे जिसमें ऐसे पुरुषों की बहनों को तीन तलाक की पीड़ा भुगतनी पड़ी होंगी | शाहबानो जैसी वृद्ध महिला को कोर्ट ने न्याय दिया पर तत्कालीन सरकार ने न्याय को ही पलट दिया | मीना कुमारी जैसी महान कलाकारा से लेकर गरीब मुस्लिमों की अनगिनत बेटियों को यह दर्द झेलना पड़ा था | अगर तीन तलाक की प्रथा नाबुद हो गई तो उसका फायदा करोड़ों मुस्लिम महिलाओं का ही हुआ | ये प्रथा नाबुद करने से ना तो हिंदुओं का फायदा हुआ है ना ही मुस्लिम समाज का नुकसान | हद तो तब हुई जब सिटीजन एमेंडमेंट एक्ट (CAA) संसद ने पारित किया | पूरा कानून भारत के किसी भी नागरिक को कोई असर करने वाला नहीं था | पाकिस्तान, बांग्लादेश, और अफगानिस्तान में रह रही वहां की अल्पसंख्यक जन संख्या जिसमें सिर्फ हिंदू नहीं, सीख, बौद्ध, जैन, पारसी और क्रिश्चियन धार्मिक प्रताड़ना से भारत में आ चुके है उनको भारत की नागरिकता यह कानून देता है | ये नागरिकता देने वाला कानून है छीन ने वाला नहीं | फिर भी दिल्लीके शाहीनबागमें बड़ा आंदोलन हुआ |इतना ही नहीं दिल्ली में बड़े पैमाने पर हिंसा हुई | जिसमें किसीको अन्याय नहीं हो रहा था, जितने लोगों को नागरिकता मिल रही थी उससे किसी छोटे जिले में भी डेमोग्राफि बदल ने वाली नहीं थी | पर पहले विषय हुआ मुसलमानों को अन्याय का और फिर उसने रूप ले लिया हिंदू मुसलमान का जो आगे जाके पहले सरकार के सामने दंगे और फिर हिन्दुओं के सामने दंगे के रूप में पूरी बात बदल गई | ऐसा ही विवाद समान नागरिक संहिता (UCC) के लिए खड़ा किया जा रहा है | यह कानून सामाजिक मामलों को ही देखने वाला है, जिसमें विवाह, तलाक, भरणपोषण,विरासत और बच्चों को गोद लेने संदर्भ में ही उपयोग में आने वाला है | उसमें कोई पंथ, संप्रदाय या धार्मिक बातों के लिए कोई प्रावधान होने वाले ही नहीं है | लेकिन इसको भी मुस्लिमों को अन्याय और फिर आगे जाके हिंदू मुस्लिम मसले के तौर पर उछाला जा सकता है | माहौल तो अभी से बनाया जा रहा है |अब जब वक्फ एमेंडमेंट कानून बना फिर से वोही रफ्तार..! यह कानून लागू होने से वक्फ समाप्त होने वाला नहीं है, थोड़े प्रशासनिक और कुछ कानूनी पहलू बदलने वाले है| जिसका फायदा अंत में तो मुस्लिम समुदाय को ही मिलने वाला है | कुल 23 राज्य और 7 केंद्र शासित प्रदेशों को मिलाकर कुल 32 वक्फ बोर्ड है | बिहार और उत्तर प्रदेश में शिया वक्फ बोर्ड अलग है | जैसे राज्यों में वक्फ बोर्ड है ऐसे ही राष्ट्रीय स्तर पर वक्फ काउंसिल है | मजे की बात यह है कि मुसलमानों में जो अहमदिया है, बोहरा है, आगाखानी है और पिछड़े मुस्लिम है, उन लोगों का प्रतिनिधित्व बिल्कुल न के बराबर है | मुस्लिम महिलाओं का प्रतिनिधित्व 1995 का वक्फ अधिनियम निश्चित नहीं करता है | नया कानून यह क्षति समाप्त करता है | 2006 में तत्कालीन कांग्रेस सरकार द्वारा गठित सच्चर समिति के अनुसार वक्फ संपत्तियों का संचालन ठीक नहीं हो रहा | कुल 8,72,320 संपत्तियों में से वार्षिक आय 163 करोड़ रुपए थी जो लगभग 12000 करोड़ रुपए हो सकती थी | एक यही बात से पता चलता है कि 2006 में वक्फ संपत्तियों के संचालन में कितना बड़ा घोटाला होगा | वैसे ही वक्फ को 1995 के कानून से मिलेगी अमर्याद सत्ता को भी मर्यादित करना जरूरी था | वक्फ किसी भी मिलकत पर उंगली रख दे तो वह मिलकत वक्फ की नहीं है वह साबित करनेकी जिम्मेदारी सामने वाले पक्ष पर थी और केस सिर्फ वक्फ ट्रिब्यूनलमें ही चल सकता था ट्रिब्यूनल के फैसले को चुनौती नहीं दी जा सकती थी, सिर्फ विशेष परिस्थितियों में ही उच्च न्यायालय हस्तक्षेप कर सकता था | एक अंदाज से वक्फ ने 994 जितनी संपत्तियों को अलग अलग राज्यों में अवैध रूप से कब्जाई है | तमिलनाडु के एक पूरे गांव को वक्फ घोषित कर दिया था | ऐसे कही उदाहरण देश की अलग अलग वक्फ ट्रिब्यूनल में लंबित है | वक्फ का पूरा मामला एक भ्रष्ट, एक तरफी, अमर्याद सत्ता के साथ गरीब मुसलमान समेत सरकार और नॉन मुस्लिम की संपति को हड़प ने वाली व्यवस्था को ठीक कर देश की मुख्य धारा की व्यवस्था में लाना है | तो फिर यह मुस्लिम विरोधी कैसे हुआ ? नए कानून से वक्फ खत्म नहीं होता जवाब देय जरूर हो जाता है | फिर भी इसे मुस्लिम विरोधी करार किया जा रहा है और जिस तरह पश्चिम बंगाल में वक्फ संशोधन एक्ट के विरोध की आड़ में हिंदुओं पर अत्याचार और उनको पलायन होने पर मजबूर किया जाता है, लगता है फिर से वही मंडली इस विषय को भी हिन्दू – मुसलमान में परिवर्तित करना चाहती है | समझना भारत के सामान्य मुसलमानों को है कि उनका हित किस में है |
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